मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने शहीद निर्मल महतो की 33वीं पुण्यतिथि पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दीl

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने शहीद निर्मल महतो की 33 वी पुण्यतिथि पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी l श्री सोरेन ने कहा कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन को व्यापक रूप और पहचान दिलाने में शहीद निर्मल महतो की अग्रणी भूमिका रही थी l उन्होंने इस आंदोलन से सभी वर्गों को जोड़कर जान फूंक दी थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे राज्य के ऐसे शख्स और आंदोलनकारी रहे हैं , जिन्होंने अपने संघर्षों की बदौलत झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को नई दिशा दी थी l जब तक झारखंड का वजूद रहेगा, शहीद निर्मल महतो का नाम अमर रहेगा l उनके आदर्श हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं l उनके द्वारा दिखाए गए राह पर चल कर हम खुशहाल और समृद्ध झारखंड बना सकते हैं l इस मौके पर मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद, मुख्यमंत्री के वरीय आप्त सचिव श्री सुनील श्रीवास्तव, श्री सुप्रियो भट्टाचार्य, श्री विनोद पांडेय और श्री मनोज पांडेय ने शहीद निर्मल महतो की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर नमन किया l
झारखंड आंदोलन के नायक निर्मल महतो थे पीड़ितों की आवाज़
नेतृत्व का अद्भुत गुण लिए निर्मल महतो झारखंड आंदोलन का एक बहुत बड़ा नाम है. नेतृत्व और सहयोग का अद्भुत गुण रखने वाले निर्मल महतो न केवल राजनीतिक कार्यों में अपितु सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते रहे थे. निर्मल महतो का जन्म जमशेदपुर स्थित कदमा के उलियान में हुआ था. वे जन्म से ही क्रांतिकारी किस्म के इंसान रहे हैं.
अपनी प्रतिभा गुण के कारण 4 वर्षों में ही बन गए झामुमो के अध्यक्ष
झारखंड की गौरव गाथा झारखंड के शहीदों ने अपने लहू से लिखी है इसी अध्याय में एक कड़ी जुड़ती है झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन अध्यक्ष निर्मल महतो की, जिन्होंने अपने बलिदान से झारखंड राज्य बनने का रास्ता साफ किया था. 4 वर्षों में ही अपने अद्भुत प्रतिभा और नेतृत्व के गुण के साथ निर्मल महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बन गए थे. इनके नेतृत्व का लोहा झामुमो के अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने तभी मान लिया था.
निर्मल महतो की शहादत ने झारखंड आंदोलन में जोड़ा नया अध्याय
झारखंड गठन के संघर्ष में नया मोड़ तब आया जब झारखंड विरोधियों ने 8 अगस्त 1987 को निर्मल महतो की हत्या कर दी. जिसके बाद ही राजनीतिक दलों छात्र युवा संगठनों के अंदर आजादी के भाव में एक मंच पर ला खड़ा कर दिया. और दुगने फुर्ती और बल के साथ झारखंड निर्माण आंदोलन को गति मिली. कई प्रयासों के बाद निर्मल महतो की शहादत आखिरकार रंग लाई और 14 नवंबर 2000 की आधी रात को झारखंड अलग राज्य के गठन के रूप में प्रतिष्ठित हुआ.
सूदखोरों से शहरवासियों को दिलाई थी निजात
उनके इन्हीं दिलेरी सहयोगी स्वभाव की चर्चाएं अब तक होती आई हैं. सभी के जेहन में 80 के दशक में जमशेदपुर में सूदखोरों के आतंक वाली घटना अब तक याद है, यह सूट कोट स्कोर के सफाई कर्मियों से वेतन मिलने के दिन ही उनका पैसा छीन लेते थे. जिस बात की जानकारी मिलते साथ निर्मल महतो ने अपनी टीम के साथ वहां धावा बोला और लोगों को सूदखोरों के डर से आजाद करवा दिया. निर्मल महतो झारखंड में शराब के खिलाफ अभियान चलाया था. अवैध शराब बनाने वालों और उसका धंधा करने वालों को उत्पाद विभाग के साथ मिलकर खुद पकड़वाते थे.
झारखण्ड के वजूद की तरह वीर शहीद निर्मल महतो जी भी अजय-अमर हैं l अलग राज्य आंदोलन को पहचान दिलाने में उनकी भूमिका अग्रणी रही। वे सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले महान व्यक्ति थे।
आइये उनके द्वारा दिखाए गए राह पर चल हम खुशहाल और समृद्ध झारखण्ड बनाएं। वीर शहीद निर्मल महतो अमर रहें! pic.twitter.com/WYgXopkvYx— Hemant Soren (घर में रहें – सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) August 8, 2020